मासूमियत के बुलबुले
एक हरी ज़िन्दगी के सपने, चंद रिश्ते - कुछ नए,कुछ अपने
पुरज़ोर फ़िज़ूल बातें; आधे चाँद, पौने सब्र की रातें।
तुम्हारी हर बात पर आह भरना, कहते कहते कुछ नहीं कहना
जिद्दी सी मासूमियत का सिलसिला था,
दुनिया में डूबने से पहले का बुलबुला था।
वो रंग दिलबरी का, तुम्हारी चुनरी पे जो लगा था
छत की दोपहरी में गाढ़ा हुआ किया था,
आवारा उस दुप्पट्टे के पीछे मोहल्ले से रंजिशें रखना
जिद्दी सी मासूमियत का सिलसिला था,
दुनिया में डूबने से पहले का बुलबुला था।
दो पहिये पर तुम्हारे घर की ज़मीन नापना
उन गलियों में छुप छुप के फिर सुकून फूंकना
थक हार के फिर बरगद से शिकायतें करना
जिद्दी सी मासूमियत का सिलसिला था,
दुनिया में डूबने से पहले का बुलबुला था।
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