On world poetry day (March 21), bear with my indulgence.
Lansdowne and other such drugs.
कुछ ज़रा नाराज़ से लोग, फिर ज़रा धीमे से लोग
दिन भर सपने पीते लोग,
रंग भरते, चिड़िया गिनते लोग,
उफ़ ये शायर किस्म के लोग।
किसी का सुकून, किसी का ग़म होकर देखिये,
किसी का ख्वाब, किसी का सोज़ होकर देखिये
थोडा शायराना होकर देखिये।
कभी इश्क कभी इबादत - बहुत जिए दुनिया के ज़हर,
खुद से रंज़ींशों का लेकिन ज़ौक ही कुछ और है।
गहरा कभी कोई रिश्ता रहा होगा तुझसे,
वरना क्यूँ इस क़दर तेरा घर जलाया मैंने ज़ार- ज़ार।
जब भी उसके रंगीन दुप्पटों से रिस्ता पानी मेरे जीने पर बरसता था,
मैं थोडा और जिया करता था, थोडा खाख हुआ करता था।
सारी रात माहताब के दीद को तरसती रही
और अब ये परिंदे आफ़ताब का मुज़्दा सुनाते हैं।
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