तेरी पतंग, मेरा इश्क

वो भी दिन थे, 
                    मेरी खिड़की तेरी पतंग का साहिल थी
                    खामोश इश्क की भीनी सी बुनियाद थी

और अब उस खिड़की से पहले
अनगिनत उलझी हुई तारों का पहरा है 
  
                   तेरी पतंग, मेरा इश्क तो फिर भी.. 
                   उसने कई मासूम परिंदों को निगला है

Comments

Shivam Sharma said…
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Shivam Sharma said…
बहुत सुन्दर. लिखती रहिये...
Astha Rawt said…
शुक्रिया
Sudesh Bhatt said…
अच्छी रचना, कम शब्दों में अपनी बात कहना कोई आप से सीखे ,शुभकामनाएं .

कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
लगता है कि शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है।
इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है !

तरीका :-
डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स
Astha Rawt said…
Thanks Sudesh, sorry have changed the setting. Cheers

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